Wednesday 24 October 2012

रावण ने किया जलने से इंकार

रावण दहन के कुछ ही देर पहले एक रामलीला ग्राउंड में जबरदस्त हंगामा मच गया. वहां मौजूद लोग अवाक् हो गए की ऐसा...हो कैसे सकता है? 
             आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ. बात इतनी गंभीर थी कि पुलिस, प्रशासन भी बेबस नजर आई. मैं परेशान होकर आसपास पूछने लगा- अरे.. हुआ क्या ! लोग बताने को तैयार नहीं, पता नहीं कौन सा डर था,...अजीब समस्या है. बड़ी मशक्कत के बाद किसी भाई ने बताया कि...रावण ने जलने से इंकार कर दिया है! मेरे मुह से निकला- क्या? मैंने फिर पूछा - अच्छा, जलना क्यों नहीं चाह रहे हैं, सज्जन ने कहा- रावण दलील दे रहे हैं कि गलत काम करे बहुत से लोग, और जलूं केवल मैं, ऐसा नहीं हो सकता ! कुछ लोग बोलने लगे कि आपको जलना ही होगा. पर रावण कि जिद्द थी कि वो मानने को ही तैयार नहीं थे. फिर एक बुजुर्ग ने समझाया कि अरे, रावण भाई, रावण का शरीर जलने से रावण मर नहीं जायेगा. यह तो दिखावा मात्र है, भ्रम है ! अगले साल फिर आ जाना कोई नया शरीर लेकर. जब तक रावण कि आत्मा को नहीं जलाया जाता, वह मर ही नहीं सकता. बुजुर्ग के बात रावण को समझ आई. तब जाकर रावण को जलाया गया. और......फिर........... और फिर क्या होगा, हमलोग बहुत मजे लिए रावण को जलते देख !!

Tuesday 25 September 2012

जरुरत राजसत्ता पर नकेल की न की राजनितिक दल

केवल चुनाव नहीं है लोकतंत्र जो बात काफी समय से चर्चा में थी अब औपचारिक तौर पर उसकी पुष्टि हो गई है। अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल की प्रस्तावित राजनीतिक पार्टी से खुद को अलग करते हुए साफ किया है कि नया दल उनके नाम का इस्तेमाल नहीं करेगा। उन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन की ओर से इस बारे में कराए सर्वे को भी खारिज कर दिया कि बहुमत नया दल बनाने का पक्षधर है। अन्ना एक गैर-राजनीतिक आंदोलन कर रहे थे, जिसमें सिविल सोसाइटी का सम्मोहक चेहरा सामने आया कि जनता सरकार को घुटने टेकने को विवश कर सकती है। अन्ना का नैतिक बल और गैर-राजनीतिक होना ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है, जिसका आम लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। आम जनमानस ऐश्वर्य चमक-दमक से थोडे़ समय के लिए प्रभावित जरूर हो जाता है, लेकिन अभिभूत सत्य और नैतिकता से ही होता है। इसलिए केजरीवाल की टीम को अन्ना की नैतिक आभा का व्यापक लाभ मिला। उन्हें गांधी के रूप में प्रचारित किया गया। मनीष सिसोदिया ने लिखा कि आज की पीढ़ी गर्व से कह सकती है कि उसने गांधी को नहीं देखा है, लेकिन अन्ना उसके सामने हैं। विडंबना यही है कि अन्ना को गांधी के रूप में प्रचारित करने वाले गांधी का मूल मंत्र नहीं सीख पाए कि जनता सार्वभौम है और राजसत्ता पर लोकसत्ता का नियंत्रण होना चाहिए, क्योंकि राजसत्ता में भ्रष्ट होने की स्वाभाविक प्रवृति होती है। इसीलिए स्वाधीनता संग्राम का सफल नेतृत्व करने के बाद उन्होंने सत्ता के शीर्ष पर बैठने की जगह लोगों के बीच काम करने का चुनाव किया। यह विश्व की अभूतपूर्व घटना थी, जब क्रांति का नेता सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार का मुखिया न बना हो। जब दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था उस वक्त गांधीजी बंगाल में सांप्रदायिक दंगे की आग को बुझाने में लगे थे। डोमिनिक लैपियर्स एवं लैरी कॉलिंस ने फ्रीडम एट मिडनाइट में लिखा है कि 15 अगस्त की रात गांधीजी कलकत्ता के जिस अतिथिगृह में रात्रि विश्राम कर रहे थे वहां बिजली नहीं थी और मोमबत्ती भी नहीं जल रही थी। गांधीजी के ही विचार को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आगे बढ़ाया कि लोकतंत्र में लोक तंत्र से बड़ा होता है। दुर्भाग्य से चुनाव को ही लोकतंत्र समझ लिया गया है। लोकतंत्र यानी पांच साल में एक बार मतदान का अधिकार। सरकार अक्सर आंदोलनकारियों को चुनाव लड़ने की चुनौती देती है। राजनीतिक पार्टी बनाने की अपनी मंशा जाहिर कर केजरीवाल ने सिविल सोसाइटी की भूमिका को न सिर्फ नकार दिया, बल्कि वही कर दिया जैसा कि सरकार चाहती थी। अब तो कोई भी आंदोलन होगा तो सरकार तपाक से प्रहार करेगी कि इतना जनसमर्थन है तो चुनाव लड़कर आ जाओ। अपने देश में पार्टियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन किसी भी दल में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है, परिवारवाद हावी है और सच बोलने की मनाही है। क्या नई पार्टी में इस तरह की खामियां नहीं होंगी? सत्ता का मद व्यक्ति को मगरूर और भ्रष्ट करता है। इसीलिए सिविल सोसाइटी की एक अहम भूमिका है। विश्व इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जब क्रांति का नेता सत्ता पाकर उन्हीं बुराइयों का शिकार हो गया जिनके विरुद्ध क्रांति की गई थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है फ्रांसीसी क्रांति। उस क्रांति की परिणति राजतंत्र की समाप्ति में हुई, जब वहां के अंतिम सम्राट लुई 16वें और साम्राज्ञी मेरी एंट्वायनेह को फांसी दे दी गई, लेकिन जब रॉविस पियर ने सत्ता की कमान संभाली तो आतंक का राज शुरू हुआ और बड़ी संख्या में लोगों को फांसी दे दी गई, क्योंकि सत्ता में तुरंत बैठे लोगों का मानना था कि कई लोगों ने क्रांति का विरोध किया और इस कारण उन्हें खत्म कर दिया जाना चाहिए। इसकी भी परिणति खुद रॉविस पियर की फांसी में हुई। इसी समय नेपोलियन का उदय हुआ, जिसने गणतंत्रीय फ्रांस को एक संविधान और कानून दिया, लेकिन सत्ता में आने के बाद उसने खुद को राजा घोषित कर दिया, जबकि क्रांति ही राजतंत्र के खिलाफ शुरू हुई थी। उस समय प्रथा यह थी कि पोप सम्राट को राजमुकुट पहनाता था। नेपोलियन ने भी पोप को ऐसा करने को कहा। राज्याभिषेक के लिए एक समारोह हुआ। इसमें पोप मुकुट लेकर खड़े थे, लेकिन नेपोलियन ने उनके हाथ से मुकुट झपटकर अपने सिर पर रख लिया। यानी राजा बनने की ऐसी छटपटाहट थी कि दो मिनट का सब्र वह नहीं रख पाए। बाद में वह अपना राजवंश चलाना चाहते थे, लेकिन वाटरलू में शिकस्त खाने के बाद इंग्लैंड ने उन्हें गिरफ्तार कर एटलांटिक समुद्र के सेंट हेलेना द्वीप पर भेज दिया, जहां कुछ सालों बाद उनकी मौत हो गई। फ्रांसीसी क्रांति राजशाही के विरुद्ध शुरू हुई थी, जब रूसो ने विचार रखा कि सार्वभौम सत्ता सम्राट में नहीं, बल्कि जनरल विल में होती है। यह बात दीगर है कि रूसो भी जनरल विल को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं कर पाए, लेकिन इसका सामान्य अर्थ जनता ही है। फ्रांस अकेला ऐसा उदाहरण नहीं है। अफ्रीका के कई देशों में ऐसा हुआ। लीबिया में कर्नल गद्दाफी राजा को हटाकर सत्ता में आए, लेकिन सोने के पलंग पर सोने लगे। उनकी निरंकुशता की कहानी जगविदित है। क्यूबा में फिदेल कास्त्रो क्रांति के बाद सत्ता में आए तो पद से चिपके रहे और स्वास्थ्य कमजोर हो गया तो अपने भाई को उन्होंने पद दे दिया। राजसत्ता पतनोन्मुख होती है। लोकतंत्र में प्रतिनिधि कई बार लोकहित के विरुद्ध काम करते हैं। इसलिए जरूरत है जीवंत सिविल सोसाइटी की, जो राजसत्ता पर नकेल कस सके। अरविंद केजरीवाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा हासिल करने के लिए अन्ना को जरिया बनाना चाहते थे। अन्ना इस रणनीति को समझ गए। वह पहले भी समझ सकते थे, लेकिन केजरीवाल की टीम उन्हें किसी से मिलने नहीं देती थी। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) साभार : दैनिक जागरण

Friday 11 May 2012

करप्ट मैं नहीं, करप्ट तो नेता व अधिकारी

लोकपाल बिल आधे इस खेमे आधे उस खेमे 
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का 
क्योंकि मैं नहीं करप्ट ! 
करप्ट तो नेता व अधिकारी..
ट्रेन में मिली नहीं बर्थ, टीटी से किया पुरजोर रिक्वेस्ट!
साली की शादी है इसलिए भीड़ देखकर भी देखा समझा वेटिंग कोरेक्ट,
परेशान हो दिए मैंने मुद्रा, फिर टीटी ने दिलाया एक थकाऊ सीट!
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का
क्योंकि मैं नहीं करप्ट !
करप्ट तो नेता व अधिकारी..
दाखिला अटका बच्चे का कॉलेज में, प्रधान से किया रिक्वेस्ट!
प्रधान ने 'मार्क्स' पर धावा बोल बोला, हो जा गोल. नहीं चलेगी कोई रिट!
परेशान हो दिए मैंने मुद्रा हजार, फिर प्रधान ने दिलाई एक 'पिछड़े की सीट'
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का
क्योंकि मैं नहीं करप्ट !
करप्ट तो नेता व अधिकारी..
दूध बेचा मेहनत से, पर नहीं चला 'घर खर्चा'
परेशान हो अपनाया 'पानी का शोर्टकट', फिर उड़ने लगा पर्चा
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का
क्योंकि मैं नहीं करप्ट !
करप्ट तो नेता व अधिकारी..
कमाया 'कोटि' में टैक्स चुकाया 'कौड़ी' में,
टैक्स वालों ने देख मेरी शातिरी बोला धावा
किसी तरह ट्वेंटी परसेंट दे कराया मामले को 'हावा'
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का
क्योंकि मैं नहीं करप्ट !
करप्ट तो नेता व अधिकारी..
मैं कहता करप्ट मैं नहीं, करप्ट तो नेता
नेता कहता करप्ट मैं नहीं, करप्ट तो 'जनता'
करता हूँ मैं समर्थन कभी इस खेमे का कभी उस खेमे का
क्योंकि 'हम' नहीं करप्ट ! 

Friday 3 February 2012

आजादी से अब तक : घोटालों का भारत

वर्ष____घोटाले/कांड का नाम___रुपये____वसूली____सजा (कितने को) 
1948__जीप खरीद घोटाला____80 लाख__शून्य_____सजा किसी को नहीं
1951__साइकिल आयात घोटाला_46 लाख_पता नहीं_एक को जेल
1956__बी एच यू फंड घोटाला__50 लाख_पता नहीं__पता नहीं  
1957__हरिदास मुंध्रा मैस घोटाला_1.25 करोड़_शून्य_मुंध्रा को जेल  
1060__तेजा ऋण घोटाला______22 करोड़__पता नहीं__तेजा को जेल
1964__प्रताप सिंह मैस घोटाला__पता नहीं_शून्य_पता नहीं  
1976__कुओ तेल व्यापार घोटाला_13 करोड़_शून्य_सजा किसी को नहीं
1987__HDW घोटाला__20 करोड़_शून्य_सजा कोई बड़ा नाम नहीं
1989__बोफोर्स कांड/ घोटाला_64 करोड़_शून्य__सजा किसी को नहीं
1989__सेंट किट्ट्स फर्जीवाड़ा__10 करोड़_न के बराबर_ सजा किसी को नहीं
1990__एयर बस घोटाला__120 करोड़_शून्य_सजा अब तक किसी को नहीं
1001__एच.डी. डब्ल्यू सबमरीन घोटाला _32 करोड़ रु__शून्य__सजा किसी को नहीं
1992__सिक्योरिटी हर्षद मेहता कांड_5000 करोड़ _शून्य_मेहता हो जेल
1992__इंडियन बैंक घोटाला__1300 करोड़_शून्य_एक कर्मचारी को जेल
1994__चीनी आयात घोटाला__650 करोड़_ना के बराबर_किसी को नहीं   
1995 तेलगी घोटाला_950 करोड़_लगभग शून्य_तेलगी को जेल
1996__चारा घोटाला_960 करोड़_लगभग शून्य_सजा सिर्फ एक कर्मचारी को
1996__शुखराम टेलिकॉम घोटाला_1200 करोड़_4.36 करोड़ रुपए_सजा एक को  
1996__सी आर भंशाली घोटाला_1030 करोड़_शून्य_सजा किसी को नहीं
1996__खाद आयात घोटाला_133 करोड़_शून्य_सजा अब तक किसी को नहीं
1997__हवाला कांड_1000 करोड़_शून्य_सजा में कोई बड़ा नाम नहीं  
2001__स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख घोटाला_1300 करोड़_शून्य_किसी को जेल नहीं  
2001__शेयर बाजार घोटाला_115000 करोड़_शून्य_कोई बड़ा नाम नहीं  
2002__कारगिल कैफीन घोटाला_500 करोड़_पता नहीं_कोई बड़ा नाम नहीं
2003__ताज कोरिडोर घोटाला_174 करोड़_शून्य_किसी को लंबी जेल नहीं  
2003__स्टांप पेपर स्कैम_30,000 करोड़_लगभग शून्य_तेलगी को जेल
2004__IPO घोटाला__146 करोड़_पता नहीं_कोई बड़ा नाम नहीं
2005__पंजाब सिटी सेंटर घोटाला_1500 करोड़__मामूली_कोई बड़ा नाम नहीं
2006__हसन अली खान घोटाला_50,000 करोड़_मामूली_कोई बड़ा नाम नहीं
2008__सत्यम कंप्यूटर्स  घोटाला_8000 करोड़__पता नहीं_रामलिंगा राजू को जेल   
2008__आर्मी राशन घोटाला_5000 करोड़_मामूली_कोई बड़ा नाम नहीं
2008__स्विस बैंक में कला धन_71,00,000 करोड़_शून्य_कोशिश जारी
2009__मनी लांडरिंग__4000 करोड़_कुछ_मधु कोड़ा को जेल
2009__झारखण्ड मेडिकल घोटाला_130 करोड़_शून्य_कोशिश जारी
2009__उडीशा खनन घोटाला_7000 करोड़_शून्य_सजा अब तक किसी को नहीं
2010__२ जी स्पेक्ट्रम घोटाला_176,000 करोड़_कोशिश जारी_राजा को कैद
2010__आदर्श हाऊसिंग घोटाला_1000 करोड़_शून्य_सी एम का इस्तीफा
2010__राष्ट्रमंडल खेल घोटाला_4000 करोड़_शून्य_कलमाड़ी को कैद लेकिन बाहर
नोट : आंकड़ों में गलतीयाँ संभव, संदेह होने पर सबंधित वेबसाइट, किताब आदि से संपर्क करनी चाहिए.
साभार : विकिपीडिया प्रस्तुति : अर्जुन बसाक.

Sunday 22 January 2012

निजी क्षेत्र में भ्रस्टाचार ( LOKPAL BILL is an empty container if private sector excluded.)

निजी क्षेत्र में भ्रस्टाचार ( LOKPAL BILL is an empty container if private sector excluded.)
१. मीडिया : 
>> पेड़ न्यूज़
>> किसी तरह 'डी ए वी पी' हासिल कर सरकारी विज्ञापन लेना 
>> जोड़ -तोड़ कर जन हित के नाम पर जमीन, कागज आदि सस्ते में हासिल करना 
२. एन जी ओ :
>> फर्जी कागजी योजनाओ से फंड जुटाना
>> टेक्स छुट नियम का वाणिज्यिक रूप से दुरूपयोग करना
>> फंड मिलने पर संचालक और कर्मचारियों की मनमानी तनख्वाह तय करना
>> जन हित के नाम पर सस्ती सुविधाएं लेना
३. कोरपोरेट :
>> औद्यागिक घराने को कई हिस्सों में बांटकर बड़ी मात्रा में टेक्स चोरी
>> फर्जी औडिट दिखाकर जनता के शेयर की राशि हड़पना
>> समितियों में फर्जी नाम जोर कर मिलने वाली सब्सिडी का दुरूपयोग
४. शिक्षा जगत :
>> केपेटेसन फीस
>> गरीब बच्चों के दाखिला के नाम पर फर्जी नामों का दाखिला
>> एक बार पंजीकरण हो जाने का बाद मनमाना फीस
>> सरकारी स्कूल की कमी का फायदा उठाकर मनचाही सिलेबस बनाकर लूटना
There are many more ... you know and facing in private sector what about this?

Tuesday 5 May 2009

सोते बेटे व पत्नी को चाकू से गोद खुदकुशी की कोशिश

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : कर्ज से परेशान एक अधेड़ ने मानवता और मानवीय रिश्ते की सभी सीमाएं लांघ दी। खस्ताहाल आर्थिक एक अधेड़ के लिए इतनी मुसीबत बन गई कि सुबह चार बजे उसने चाकू से अपने सोते हुए चार वर्षीय बेटे को मौत के घाट उतार दिया, इसके बाद उसने दूसरे बेटे और फिर पत्नी को चाकू से गोदा और अंत में खुद को चाकू से गोद कर खुदकुशी करने की कोशिश की। यह दिल दहलाने वाली घटना हुई है दक्षिणी दिल्ली स्थित बदरपुर के मोलड़बंद एक्सटेंशन में। घटना में सबसे छोटे बच्चे की मौत हो गई है, जबकि दंपति की हालत गंभीर है।
बदरपुर के मोलरबंद एक्सटेंशन में अनंत रावत पत्नी नंदनी (36) व दो बच्चे चेतन (4) और पवन (7) के साथ रहता है। सोमवार की सुबह करीब चार बजे उसने अपने चार वर्षीय बेटे चेतन को गले पर चाकू से वार किया। उसके बाद उसने बड़े बेटे पवन पर चाकू से वार किया। फिर पत्नी नंदनी को चाकू से गोदा और उसके बाद खुद को चाकू से गोद का जान देने की कोशिश की। खून से लथपथ होने के बावजूद किसी तरह पवन और नंदनी चिल्लाते हुए घर से बाहर की ओर भागे। बाद में आनंद को खुद को घायल करता हुआ बाहर की ओर भागा और सड़क किनारे गिर पड़ा। किसी तरह उसके बड़े बेटे ने पुलिस को सूचित किया। बाद में आसपास के पड़ोसी जमा हो गए। घटना में छोटा बेटा चेतन की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि पुलिस ने अन्य तीनों को एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया है। प्राथमिक उपचार के बाद बड़े बेटे पवन को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है, जबकि नंदनी और आनंद की हालत गंभीर है।
जानकारी के अनुसार, अनंत चार वर्षो से मोलड़बंद एक्सटेंशन में रहता है। उसकी मकान मालकिन राजमति ने बताया कि वह इलाके में ही करीब 15 सालों से रावत आयुर्वेदिक-सह-जनरल स्टोर चला रहा था। कई सालों से उसकी दुकान ठीक नहीं चल रही थी। ऐसे में कुछ महीनों से वह प्राईवेट नौकरी कर रहा था। पड़ोसियों के अनुसार उसकी यह नौकरी भी कुछ दिन पहले छूट गई। उस पर कर्ज था, माली हालत के कारण वह कर्ज नहीं चुका पा रहा था। कुछ दिन पहले कुछ महाजन उसकी दुकान से सामान उठाने की कोशिश भी की थी। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
कल बाबा ने लगाया था चेतन को मरहम ..
नई दिल्ली, जासं : चेतन को रविवार को हल्की सी चोट लगने पर पापा ने उसे गोद में उठाकर मरहम लगाया था, लेकिन पता नहीं सुबह क्या हो गया पापा को कि उसके अपने जिगर के टुकड़ों को नींद से जगाकर अपने हाथों से काट डाला। कुछ ऐसे की दर्द भरे बातें कहीं सोमवार की सुबह की उस खूनी मंजर से बच कर निकले आनंद रावत के बडे़ बेटे पवन ने। इतना होने के बाद भी उसे अपने पापा पर विश्वास है कि फिर एक दिन उसके पापा उसे गोदी में उठाकर प्यार करेंगे। एक फिर ऐसी घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या आम आदमी के पास इतना भी दाल-चावल नहीं है कि वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें? क्या लोकतंत्र के नायक आम लोग वाकई में नायक है या ये सब सिर्फ एक कहावत है।

Tuesday 10 March 2009

मिली पहली बाई लाइन


अब दैनिक जागरण के स्थानीय ब्यूरो के लिए आईटीओ कार्यालय से रिपोर्टिंग कर रहा हूं मिली पहली बाई लाइन